Thursday, August 4, 2011

बिहारियों के तकनीकि विकास का सपना : अमित दास

आज भी इंटर की परीक्षा के बाद ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों में जिस भविष्य की तलाश करते हैं वो है मेडिकल और इंजीनियरिंग. जैसे ही इंटर की परीक्षा का परिणाम आता है लोग चेन्नई, बंगलुरु और कोटा जैसे शहरों का रुख करते हैं. इन शहरों में जाने वाले लोगों में ज्यादातर बिहार के लोग होते हैं. ये लोग बिहार से बाहर इसलिए जाते रहे हैं क्यूंकि बिहार में ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं थी. मजबूरियों में लोग अपने खून पसीने की कमाई दूसरे राज्यों में दे आते रहे हैं. कई लोग तो इन मजबूरियों के कारण अपना सपना पूरा नहीं कर पाते थे. ऐसा ही एक सपना अधूरा रह गया जो अररिया जिले के मृदौल ग्राम निवासी स्वर्गीय मोती बाबू ने भी देखा था - अपने बेटे को इंजिनियर बनाने का. उनका सपना तो पूरा नहीं हो सका पर आज उनके पुत्र श्री अमित दास कुछ ऐसा कर रहे हैं जिससे बिहार के उन तमाम लोगों का इंजिनियर बनने का सपना जरुर पूरा होगा जो किसी भी आभाव के कारण अपना सपना पूरा नहीं कर पाते थे.

अमित दास से मेरी पहली मुलाकात पिछले 'प्रवासी भारतीय दिवस' के दौरान हुई थी. सौम्य, शांत और हंसमुख व्यक्तित्व के मालिक अमित दास ने महज ३१ साल की छोटी सी उम्र में जो भी हासिल किया है वो किसी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हो सकता है. एक मुलाकात में अमित बताते हैं कि किस प्रकार उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा सुपौल के बीरपुर से पूरी की, जहाँ छात्र बोरे पे बैठ के पढाई किया करते थे. स्कूलों में बेंच-डेस्क की सुविधा तक नहीं थी वहां पे. स्कूल की पढाई करने के बाद जब पटना के ए० एन० कॉलेज में नामंकन हुआ तो ऐसा लगा जैसे बहुत बड़ी चीज़ हासिल कर ली. उसके बाद वो भी और लोगों की तरह दिल्ली चले गए. काफी समय तक डी टी सी की बसों में धक्के खाए. उन दिनों बस यही सोंच रहती थी कि अपनी कमाई से अगर एक ट्रैक्टर खरीद पाए तो कुछ कर पाएंगे. धीरे-धीरे पता चला कि कंप्यूटर का कोर्स करने से कुछ अच्छा हो सकता है. पर इसमें भी दिक्कत थी. ज्यादातर बिहारियों की तरह अंग्रेजी कमजोर थी. पर रास्ता दिख गया था और वो मेहनत करने से पीछे नहीं हटने वाले थे. बिहारी लोग तो जन्मजात मेहनती होते हैं बस मौका मिलना चाहिए या रास्ता दिखाई देना चाहिए. पूरी ताकत लगा देते हैं बिहारी लोग. अमित दास ने भी पूरी ताकत लगा दी. धीरे-धीरे वे microsoft certified कंप्यूटर प्रोफेशनल बन गए. यहाँ से उनकी जिंदगी ने यू-टर्न लिया. अपनी एक कंपनी खोली. समय के साथ काम बढ़ने लगा. फिर मौका मिला और वो ऑस्ट्रेलिया चले गए. वहां भी अपनी एक कंपनी खोल ली. मेहनती अमित की किस्मत ने साथ दिया और वो तरक्की की सीढियाँ चढ़ते गए।

तरक्की की सीढियाँ चढ़ते हुए भी अमित दास को अपने पिता का सपना पूरा करने का ख्याल था और इसी उद्देश्य से उन्होंने इन्नोतेक एडुकेशनल सोसाएटी बनाई. इसी दौरान बिहार फौन्देशन के संपर्क में आये. उनके प्रोजेक्ट में हर संभव सहायता की गयी. ज्यादातर देखा गया है की जो भी लोग बिहार में निवेश के लिए आते हैं वो पटना या उसके आस-पास ही निवेश करना चाहते हैं. पर अमित दास तो अपने जिले में ये कॉलेज खोलना चाहते थे ताकि बिहार के उस सुदूर इलाके के लोगों का सपना न टूटे. सरकार की तरफ से आवश्यक औप्चारिक्तायें पूरी की गयीं. ज़मीन उपलब्ध करायी गयी. 16 अगस्त 2010 को फौर्बीसगंज में उनके कॉलेज का शिलान्यास हुआ. 110 करोड़ की लागत से बनने वाले इस कॉलेज में विश्वस्तरीय पढाई की व्यवस्था होगी. TAFE ऑस्ट्रेलिया के साथ उच्च स्तरीय शिक्षा की व्यवस्था की गयी है. यह सुविधा सेटेलाईट के माध्यम से भी सीधे ऑस्ट्रेलिया से उपलब्ध करायी जाएगी. पूर्व से ही छात्रों के प्लेसमेंट की भी पूर्ण व्यवस्था की गयी है, जो न सिर्फ भारत बल्कि विश्व स्तर तक होगी।


अमित दास का जज्बा बिहार के लिए सिर्फ अपने निवेश तक ही सीमित नहीं है. वो ऑस्ट्रेलिया में न सिर्फ बिहारियों को संगठित कर रहे हैं बल्कि एक australian कंपनी को भी बिहार में निवेश करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं. इस कंपनी के प्रतिनिधि जब भी भारत आते थे तो सिर्फ दिल्ली या मुंबई तक ही जाते थे. बिहार के बारे में तो जो भी उन्होंने सुना था उससे उन्हें बिहार आने में डर लगता था. अमित दास ने किसी तरह न सिर्फ उन्हें विश्वास दिलाया की बिहार बदल गया है बल्कि उनके बिहार आने जाने और रहने का खर्च भी खुद दिया. हमने उनकी मीटिंग CM के निवेश सलाहकार और वरिस्थ्तम IAS अधिकारी श्री एस० विजयराघवन से करवाई. इस मीटिंग में सम्बंधित अधिकारी भी शामिल हुए. अमित दास का प्रयास सफल हुआ और कंपनी के प्रतिनिधियों ने बिहार में निवेश करने की बात कही. उनके जाने के कुछ दिनों के बाद मेरे पास कंपनी के एक प्रतिनिधि रोबर्ट का मेल आया जिसमे लिखा था कि 'दुनिया के कई हिस्सों में हम बिज़नस कर रहे हैं पर जो व्यव्हार और सम्मान बिहार में मिला वो कहीं नहीं मिला और ये हमारे बिज़नस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है'. सौर उर्जा से पानी को पीने लायक बनाने वाली ये कंपनी नालंदा और पटना में पइलोत प्रोजेक्ट के रूप में कम शुरू करेगी और फिर सफलता के बाद मशीन के निर्माण हेतु संयंत्र भी लगाएगी. अगर सब कुछ ठीक रहा तो अनुमानित निवेश लगभग २५ मीलियन डॉलर का होगा।

पिछले साल एक संस्था ने अमित जी को उनके सरह्निये कार्यों के लिए 'बिहारी अस्मिता सम्मान दिया. मुझे अच्छी तरह याद है जब अमित दास लोगों से अपने विचार बता रहे थे तो खचाखच भरे श्री कृष्ण मेमोरिअल हॉल में काफी देर तक तालियों की गरगाराहत गूंजती रही. जब भी अमितजी से बात होती है एक ताजगी का एहसास होता है. जिसे सुनकर सहसा ही ये विश्वास होता है कि अब किसी पिता का सपना नहीं टूटेगा. उसके बेटे परदेस से इतने काबिल होके बिहार को विकसित बनाने के लिए लौट जो आये हैं. उम्मीद है शीघ्र ही और अमित बिहार लौटेंगे और बिहार में कई इंजीनियरिंग कॉलेज खोलेंगे जिससे बिहार के छात्रों को बंगलोर, चेन्नई और कोटा नहीं जाना पड़ेगा और बिहार का पैसा भी बिहार में ही रहेगा.

2 comments:

  1. I am very glad to read about Mr. Amit.He is doing a great job and will isnpire the masses in the coming time..I wish him great success

    ReplyDelete