कुछ दिनों पहले निर्माण फौन्डेशन के राकेश प्रकाश, आयुष आनंद और मनीष कुमार जब मुझसे मिलने आये तो इन युवाओं को देख कर मैं थोडा सशंकित हुआ कि पता नहीं जिस मुद्दे पे ये बात करने आये हैं उसको लेके ये कितने सजग हैं। कम उम्र पर योजना बड़ी। ये लोग अमेरिका में रह रहे एक प्रवासी बिहारी वैज्ञानिक के संरक्षण में "बिहार साइंस चैलेन्ज" नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन बिहार में करना चाहते थे। उद्देश्य था १० से १७ साल के युवा बिहारियों के दिमाग में एक वैज्ञानिक सोंच को बढ़ावा देना, जिसके माध्यम से बिहार की कुछ मूलभूत समस्याओं के लिए एक मौलिक समाधान खोजना। इस प्रतियोगिता के बिषय भी बड़े रोचक रखे हैं इन्होने, जैसे - 'बिहार गो ग्रीनर', 'इनोवेटिव टेक्निक फॉर इर्रिगेशन', 'पटना ट्राफिक मनेजमेंट, 'रेन वाटर हार्वेस्टिंग', 'कैच द क्रिमिनल्स इन सिक्सटी सेकेण्ड', 'पॉवर ओउतेज सोलुशन'। पुरष्कार की राशि भी आकर्षक है।- प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले को ५१०००, द्वितीय को २१००० और तृतीय को ११०००। इसके अलावे १५ लोगों के लिए सांत्वना पुरष्कार भी है। नवम्बर में होने वाले इस आयोजन से उम्मीद है की इससे बिहारी बच्चों में कुछ वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होगा। साथ ही बिहार की कुछ समस्याओं का अच्छा समाधान मिल जाये.
बातचीत के क्रम में पता चला की ये सभी आई आई टी से पास और एक बड़े ही प्रतिष्ठित कम्पनी में काम कर रहे थे। उनमे से एक मनीष कुमार अभी भी ONGC में काम कर रहे हैं। तो फिर ये सब अच्छी सैलरी और प्रतिस्था वाली नौकरी छोड़ के बिहार में क्यूँ काम करने आ गए। अजी साहब ये नया पैशन है प्रबुद्ध युवाओं का। नया जोश, सब कुछ बदल देने का जज्बा। या शायद वो दर्द जो इस पीढ़ी ने झेला है बिहारी होने के नाते। हर जगह अपनी पहचान छुपाये, डरे सहमे, न जाने किस बात के लिए बलि का बकरा बना दिया जाये। पर शायद इन मुश्किलों से जूझते हुए ही लड़ने की ताकत आ गयी है। और खड़े हो गए हैं अपने बिहार को बचाने के लिए। इसके विकास के लिए योगदान देने के लिए। या शायद वो खोयी हुई प्रतिस्था फिर से पाने के लिए, जब बिहारी कहलाना गर्व की बात होती थी.
बरबस ही याद आ गयी डॉ० रवि चंद्रा की, जिन्होंने IRMA से कोर्स करने के बाद अच्छी नौकरी छोड़ 'बिहार देवलोपमेंट ट्रस्ट' नाम से संस्था बना कर बिहार के गरीब लोगों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से माइक्रोफिनांस के क्षेत्र में काम शुरू किया। आज वो काफी अच्छा काम कर रहे हैं। उम्मीद करता हूँ की आनेवाले दिनों में वो कुछ वैसा कर पायें जैसा की बंगलादेश के मोहम्मद युनुस ने अपने देशवासियों के लिए किया था।
इन्ही युवाओं में दो ऐसे नाम हैं जिनसे आप सभी परिचित हैं। एक हैं आई आई एम् सब्जीवाले के नाम से मशहूर नालंदा जिले के कौशलेन्द्र और दूसरा बेगुसराई के इरफ़ान आलम। आई आई एम् अपने आप में ही एक ब्रांड है। सभी जानते हैं कि उसके नाम पे लोगों को कितने अंकों वाला वेतन मिल सकता है, पर उसे छोड़ के बिहार में ऐसा काम शुरू करना जिसके बारे में ज्यादा लोग सोंच भी नहीं सकते। पर आज सभी जानते हैं की उनके इस प्रयास से कितने ही किसानों की जिंदगी बदल गयी। हो सकता है भविष्य में बिहार सब्जी के सबसे बड़े उत्पादक और बाज़ार के रूप में उभर कर सामने आये। जिस प्रकार फलों खास कर नारंगी ने अमेरिका के कैलिफोर्निया का रूप बदल दिया, मुझे लगता है ठीक उसी तरह एक दिन फ़ूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में बिहार का भी नाम होगा, जिसकी शुरुआत के लिए कौशलेन्द्र जैसे युवाओं का नाम जरुर लिया जायेगा। इरफ़ान आलम के सम्मान फौन्देशन ने कितने ही रिक्शा वालों को सम्मान के साथ जीने का हौसला दिया। मुझे याद है किस तरह से इरफ़ान एक चैनल की एक प्रतियोगिता 'बिज़नस बाज़ीगर' के विजेता बने थे। ये बिहारी लोगों का जन्मजात टैलेंट होता है। जहाँ जाते हैं छा जाते हैं। अब तक यह टैलेंट दूसरों के लिए कार्य करता था पर अब यह अपने बिहार के लिए कार्य करने को आतुर है.
एक और प्रगतिशील युवा हैं नितिन चंद्रा। इनका माध्यम थोडा अलग है पर मकसद वही है बिहार की तरक्की। फ़िल्में बनाते हैं। कुछ साल पहले इन्होने एक फिल्म बनाई थी - 'Bring Back Bihar' जिसमे बिहार को वापस लाने की बात रखी गयी थी। बिहार फौन्देशन के लिए भी एक फिल्म बनाई - 'A New Chapter' जो प्रवासी बिहारियों पर आधारित थी और बिहार फौन्देशन के आने से प्रवासियों में जो एक उम्मीद जगी है उसको चित्रित किया गया है। अभी हाल में इन्होने 'Deswa' नाम से एक भोजपुरी फिल्म का निर्माण किया है। जिसमे भोजुपरी को हिंदी सिनेमा के समान्तर ला कर खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। इस फिल्म में उन्होंने बिहारी थीएटर से जुड़े लोगों को मौका दिया है और फिल्म की ज्यादातर शूटिंग बिहार में ही की है। इन्होने और नीतू चंद्रा ने मुंबई में हुई एक मुलाकात में पटना में अपना एक एक्टिंग ट्रेनिंग स्कूल खोलने की इच्छा व्यक्त की थी - चंद्राज़ के नाम से.
ये ट्रेनिंग स्कूल ये लोग मुंबई में भी खोल सकते हैं, पर बिहार को आगे बढाने की इनकी सोंच ही उन्हें बार-बार बिहार ले आती है। हम ऐसी उम्मीद करते हैं कि deswa फिल्म भोजपुरी के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू करेगी।
बातचीत के क्रम में पता चला की ये सभी आई आई टी से पास और एक बड़े ही प्रतिष्ठित कम्पनी में काम कर रहे थे। उनमे से एक मनीष कुमार अभी भी ONGC में काम कर रहे हैं। तो फिर ये सब अच्छी सैलरी और प्रतिस्था वाली नौकरी छोड़ के बिहार में क्यूँ काम करने आ गए। अजी साहब ये नया पैशन है प्रबुद्ध युवाओं का। नया जोश, सब कुछ बदल देने का जज्बा। या शायद वो दर्द जो इस पीढ़ी ने झेला है बिहारी होने के नाते। हर जगह अपनी पहचान छुपाये, डरे सहमे, न जाने किस बात के लिए बलि का बकरा बना दिया जाये। पर शायद इन मुश्किलों से जूझते हुए ही लड़ने की ताकत आ गयी है। और खड़े हो गए हैं अपने बिहार को बचाने के लिए। इसके विकास के लिए योगदान देने के लिए। या शायद वो खोयी हुई प्रतिस्था फिर से पाने के लिए, जब बिहारी कहलाना गर्व की बात होती थी.
बरबस ही याद आ गयी डॉ० रवि चंद्रा की, जिन्होंने IRMA से कोर्स करने के बाद अच्छी नौकरी छोड़ 'बिहार देवलोपमेंट ट्रस्ट' नाम से संस्था बना कर बिहार के गरीब लोगों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से माइक्रोफिनांस के क्षेत्र में काम शुरू किया। आज वो काफी अच्छा काम कर रहे हैं। उम्मीद करता हूँ की आनेवाले दिनों में वो कुछ वैसा कर पायें जैसा की बंगलादेश के मोहम्मद युनुस ने अपने देशवासियों के लिए किया था।
इन्ही युवाओं में दो ऐसे नाम हैं जिनसे आप सभी परिचित हैं। एक हैं आई आई एम् सब्जीवाले के नाम से मशहूर नालंदा जिले के कौशलेन्द्र और दूसरा बेगुसराई के इरफ़ान आलम। आई आई एम् अपने आप में ही एक ब्रांड है। सभी जानते हैं कि उसके नाम पे लोगों को कितने अंकों वाला वेतन मिल सकता है, पर उसे छोड़ के बिहार में ऐसा काम शुरू करना जिसके बारे में ज्यादा लोग सोंच भी नहीं सकते। पर आज सभी जानते हैं की उनके इस प्रयास से कितने ही किसानों की जिंदगी बदल गयी। हो सकता है भविष्य में बिहार सब्जी के सबसे बड़े उत्पादक और बाज़ार के रूप में उभर कर सामने आये। जिस प्रकार फलों खास कर नारंगी ने अमेरिका के कैलिफोर्निया का रूप बदल दिया, मुझे लगता है ठीक उसी तरह एक दिन फ़ूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में बिहार का भी नाम होगा, जिसकी शुरुआत के लिए कौशलेन्द्र जैसे युवाओं का नाम जरुर लिया जायेगा। इरफ़ान आलम के सम्मान फौन्देशन ने कितने ही रिक्शा वालों को सम्मान के साथ जीने का हौसला दिया। मुझे याद है किस तरह से इरफ़ान एक चैनल की एक प्रतियोगिता 'बिज़नस बाज़ीगर' के विजेता बने थे। ये बिहारी लोगों का जन्मजात टैलेंट होता है। जहाँ जाते हैं छा जाते हैं। अब तक यह टैलेंट दूसरों के लिए कार्य करता था पर अब यह अपने बिहार के लिए कार्य करने को आतुर है.
एक और प्रगतिशील युवा हैं नितिन चंद्रा। इनका माध्यम थोडा अलग है पर मकसद वही है बिहार की तरक्की। फ़िल्में बनाते हैं। कुछ साल पहले इन्होने एक फिल्म बनाई थी - 'Bring Back Bihar' जिसमे बिहार को वापस लाने की बात रखी गयी थी। बिहार फौन्देशन के लिए भी एक फिल्म बनाई - 'A New Chapter' जो प्रवासी बिहारियों पर आधारित थी और बिहार फौन्देशन के आने से प्रवासियों में जो एक उम्मीद जगी है उसको चित्रित किया गया है। अभी हाल में इन्होने 'Deswa' नाम से एक भोजपुरी फिल्म का निर्माण किया है। जिसमे भोजुपरी को हिंदी सिनेमा के समान्तर ला कर खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। इस फिल्म में उन्होंने बिहारी थीएटर से जुड़े लोगों को मौका दिया है और फिल्म की ज्यादातर शूटिंग बिहार में ही की है। इन्होने और नीतू चंद्रा ने मुंबई में हुई एक मुलाकात में पटना में अपना एक एक्टिंग ट्रेनिंग स्कूल खोलने की इच्छा व्यक्त की थी - चंद्राज़ के नाम से.
ये ट्रेनिंग स्कूल ये लोग मुंबई में भी खोल सकते हैं, पर बिहार को आगे बढाने की इनकी सोंच ही उन्हें बार-बार बिहार ले आती है। हम ऐसी उम्मीद करते हैं कि deswa फिल्म भोजपुरी के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू करेगी।
एक और युवा हैं बिभूति बिक्रमादित्य - द० कोरया में अच्छी खासी नौकरी कर रहे हैं पर बिहार को वापस लाने का जज्बा इन्हें बार-बार बिहार ले आता है. विज्ञान के क्षेत्र में बिहार को आगे ले जाने के उद्देश्य से हर साल 'इंडियन साइंस कौंग्रेस' के तर्ज पर 'बिहार साइंस कौंग्रेस' का आयोजन करते हैं. मैं भी अपने कॉलेज के दिनों में इंडियन साइंस कौंग्रेस का सदस्य हुआ करता था जिसका उद्घाटन प्रतिवर्ष प्रधानमंत्री करते थे और उसमे देश के तमाम वैज्ञानिक और उसमे रूचि रखने वाले लोग इकठ्ठा होते थे. अभी हाल ही में इन्होने पटना ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिये अपने सुझाव प्रस्तुत किये हैं. इनकी योजना बिहार में एक टेक्नीकल इंस्टिट्यूट स्थापित करने की भी है. साथ ही कोरया में ये बिहार फौन्देशन को भी फैला रहे हैं।
ऐसे कई युवाओं के मेल मुझे आते हैं जो अभी अपने फ़ाइनल इयर में हैं या किसी प्रतियोगिता परीक्षा के साक्षात्कार में जाने वाले हैं और वो बिहार के लिए कुछ करना चाहते हैं. मेरी उनको निजी सलाह होती है कि पहले वो खुद को करियर में स्थापित करें फिर वो बिहार के लिए ज्यादा अच्छे से योगदान दे पाएंगे. पर सोंचने वाली बात ये है कि आज युवाओं में बिहार के लिए कुछ करने कि प्रवृति बढ़ रही है. ये शायद बिहारी होने का दंश झेलने के कारण हो या फिर जैसी सुविधा और वातावरण वो दूसरे राज्यों या देशों में देखते हैं वैसा ही बिहार में भी बनाना चाहते हो ताकि आने वाली पीढ़ी को वो सब न झेलना पड़े जो हमें झेलना पड़ा है.