यूँ तो दुर्गा पूजा में कई शहरों में रहने का मौका मिला है। हो सकता है कई जगहों की पूजा में तकनीक और मूर्तिकला का ज्यादा अच्छा उदाहरण (जैसे कोलकाता में) देखने को मिलता हो, पर जो अपनापन बिहार की पूजा में मिलता है वो शायद ही कहीं महसूस होता है. इस बार भी पटना की पूजा में वही अपनापन और जोश देखने को मिल रहा था।
पंडालों की सज्जा हो या मूर्तियों का डिजाईन, हर प्रस्तुति अपने आप में अलग थी। अलग-अलग थीम पर पंडालों की सजावट इस बार भी देखते ही बनती थी।
कहीं पर मंदिरों का डिज़ाइन बनाया गया था तो कहीं कोई दृश्य।
पर असली आकर्षण तो वो पंडाल थे जहाँ तकनीक का इस्तेमाल कर प्रदर्शन किया गया था. लाइट और साउंड के प्रयोग से दिखाया जा रहा था की किस प्रकार देवी दुर्गा महिसासुर का वध कर रही हैं. जलती बुझती रौशनी के बीच एक त्रिशूल और तीर आके महिसासुर को लगता था. साथ ही बैक ग्राउंड में अट्टहास और अन्य आवाज़ प्रदर्शन को जीवंत बना रही थीं. एक अन्य पंडाल में राक्षश के मुख में गुफा की शक्ल दी गयी थी और अन्दर में देवी की प्रतिमा स्थापित की गयी थी. बाहर के भाग में करीब २०-२५ फीट ऊँचा पहारनुमा आकृति थी जिस पे भागीरथ द्वारा गंगा को धरती पे लाने का दृश्य दिखाया गया था. जलती-बुझती रौशनी और साउंड इफ्फेक्ट के बीच पानी की निकलती धारा गंगा के धरती पे आने का उत्तम प्रदर्शन था. इन जगहों पे लोगों की भीड़ बेकाबू हो रही थी।
कई जगहों पे मूर्तियों की सुन्दरता भी देखते ही बनती थी. साथ की सजावट से इसमें चार चाँद लग गया था. रोड के दोनों तरफ ट्यूब लाइट की रौशनी पुरे पटना को जगमग बना रही थी. मुख्य सड़कों का शायद ही कोई इलाका दिखा जहाँ रौशनी नहीं थी. सड़कों पे पूरी चहल पहल दिख रही थी. कारों और बाइक का काफिला कई जगहों पे अटका पड़ा था. उनकी गति भी पैदल चलने वालों के सामान ही धीमी थी। हाथों में हाथ डाले लोग (जोड़े) अब पटना की सडको में बड़े बेफिक्र हो के घूम रहे थे और पूजा का आनंद उठा रहे थे. मुझे याद है कॉलेज के वो दिन जब इन्ही पटना की सड़कों पे ऐसे लोग शायद ही दिखते थे. इसी भीड़ में कई युवा जोड़ों को पीछे छोड़ता हुआ एक बुजुर्ग जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकडे तेज़ी से आगे निकलता हुआ दिखा. माता-पिता या बड़े भाई-बहन अक्सर छोटे भाई-बहनों का हाथ पकड़ कर इसलिए चलते हैं कि कहीं खो न जाएँ. कई लोग इस भीड़ में खो भी जाते हैं. ऐसे में इस बार भी जगह-जगह पे पंडालों में अनाउंस किया जा रहा था खोये हुए लोगों के बारे में. एक जगह पे अनाउंसर कुछ इस तरह से कह रहा था - 'रिन्कुजी आप जहाँ कहीं भी हों पंडाल के गेट पे चले आयें आपके घरवाले बड़ी ही बेशर्मी (शायद वह बेशब्री कहना चाह रहा था) से आपका इंतज़ार कर रहे हैं.' इस तरह से उसने कई बार अनाउंस किया. लोगों को इस तरह कि बात सुनकर बड़ा मज़ा आ रहा था।
बेली रोड पे राक्षश कुल का एक प्राणी अपनी चमकती हुई सींघों के साथ आगे बढ़ रहा था, जिसे देख बच्चे डर जा रहे थे. कुछ बड़े बच्चे चमकने वाली सींघ की दुकान खोज रहे थे. हर बार पूजा में कोई न कोई इस तरह की नयी चीज़ बाज़ार में आती है जो बच्चों और युवाओं का आकर्षण बनती है. जगह-जगह खिलोने, मूर्तियों की दुकाने सजी पड़ी थीं. इनमे बंदूकों की बिक्री शायद सबसे ज्यादा होती है. मुझे याद है हमलोग दुर्गा पूजा से ही अपने पिताजी से बन्दूक खरीदवा लिया करते थे और छठ तक चोर- पुलिस खेला करते थे. आज भी बंदूकों का क्रेज बरक़रार है. छोटे-बड़े तरह-तरह के झूले बच्चे तो बच्चे, बड़ों के भी आकर्षण का केंद्र बने हुए थे. कुछ चीज़ें सदाबहार होती हैं. फर्क सिर्फ तकनीक का आ जाता है. आज के झूले कई तरह के हो गए हैं. गोलगप्पे जिसे पटना में हमलोग फोक्चा के नाम से जानते हैं, चाट पकोरे, आइसक्रीम इत्यादि की दुकाने, ठेले लगे हुए थे और हर बार की तरह लोगों की भीड़ इन सड़क के किनारे मिलने वाले व्यंजनों का आनंद ले रही थी.
नवमी के दिन सुबह से हो रही बारिश से तो लगता था कि इस बार पूजा का मज़ा किरकिरा हो गया, पर शाम होते-होते सबकुछ सामान्य हो गया था और लोगों कि भीड़ उसी उत्साह से पटना घूम रही थी और पटना के दुर्गा पूजा का आनंद उठा रही थी. इस भीड़ में कुछ पराये भी थे कुछ अपने भी।
हम चाहे जहाँ कहीं भी चले जाएँ, कितनी सुविधाओं में क्यूँ न रहने लगें पर पर्व के समय अपने बिहार में रहना ही सबसे ज्यादा खुशी देता है. वो अपनापन, वो लगाव जो यहाँ है, वो शायद कहीं नहीं है. वैसे लोग जो किसी कारणवश घर नहीं आ सके उम्मीद है उन्हें इससे अपने बिहार कि कुछ झलक जरुर मिलेगी. अपने विचार और अनुभव हमें जरुर बताएं. कुछ संकलित तस्वीरों के साथ आपको छोड़ रहा हूँ. आप सबों को दशहरा की ढेर सारी शुभकामनायें.
सत्यजित जी, बहुत उम्दा लेखन है. घर से दूर होकर भी इस लेख को पढ़ कर घर की याद आ गयी. बचपन की सारी यादें जो की दुर्गापूजा के समय की थी एक एक कर दिमाग में आ रही हैं. आपको बहुत बहुत धन्यवाद है.
ReplyDeleteSatyajit ji , Bahoot sunder prashtuti hai.
ReplyDeleteitna jivant aur sajiv varnan padha kar maja aa gaya.
ReplyDeleteThanks for putting the descriptive report for us.
Looking for more in coming days on Chhatha.
Satyajit jee, bahut hi sarikhe se aapne Durga puja celebration ko prashtut kiya hai. Padh kar kaafi acha laga aur dil mein ek kami si mehsoos bhi hone lagi. Dil chaah raha hai ki yaado se nikal kar jindgi ek baar fir jeene ka moka mil jaaye. Dekhte hai aage kya hota hai????
ReplyDeleteNway thanx 4r this nice artice.
Satyajit ji,
ReplyDeleteAAp ke ander se ek kushal lekhak dastak de raha hai. Lekh padh kar aysa laga ki mai patna me hoon. keyal eh bhi aya ki sab bache ghar me hai na ki pendal me "besharmi" wala elan mujhe bhi sunna padega.
Many many thanks to you.
SHAKIL AHMED KAKVI, DOHA-QATAR
"Durga Puja ! bachpan ki bahut saari yaden judi hain is puja aur mele se.. aur aapne Patna ki Durga Puja ko bahut hi santulit aur manoranjak dhang se bataya hai .. Bahut bahut dhanyavaad aur Badhayi iske liye. padhte padhte ek bargi ye ehsaas hone laga ki main bhi aapke saath Patna ki galiyon me ghoom raha hoon aur mele ka aanand utha raha hoon.. ki kash aisa ho pata..hope to see n read more of ur thoughts on ur blog Satyajit Ji. Gr8 pleasure always !!"
ReplyDeleteBahut hi badhiya chitran hai.Accha laga.
ReplyDeleteDear Satyajeetji,
ReplyDeleteThan you for sharing these wonderful pictures.
With best regards
Ramesh Yadav, USA
Achha laga Patna ke pandals ko dekh kar. Thanks for sharing.
ReplyDeleteSarvesh, Banglore
I normally make it a point to visit Patna during puja.Could not go this year bcoz of CWG.
ReplyDeletethanx satyajit........it is very nice......aapne to ghar ki sair kara di.......thanx again...
ReplyDeleteLusaka, Zambia
apni janm bhumi ki yahi to diwangi hai
ReplyDeleteSanjeev, Surat
maja aa gaya.
ReplyDeleteAlok, Ghaziabad