मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार पहला हीरा तराशते हुए |
अगस्त 2011 की एक शाम मैं और रविशंकर श्रीवास्तव सर (अपर आयकर आयुक्त एवं बिहार फ़ाउंडेशन मुंबई चैप्टर के अध्यक्ष) फोन पर
बातें कर रहे थे। चर्चा अपर्णा की हो रही थी। बातों-बातों में बात निकली कि अपर्णा
के अलावा और कौन से क्षेत्र हैं, जिसमे बिहार में निवेश की संभावना है।
बातों में मैंने बताया कि कुछ वर्षों पहले तक जेम्स और जेवेलरी से भारत सरकार को सबसे ज्यादा आय हुआ करती थी और बिहार में तो यह क्षेत्र
खाली है। उसी समय रविशंकर सर ने बताया कि एक हीरे की कंपनी है जो अपना एक नया प्लांट लगाने के बारे में सोंच
रही है। पर वो लोग गुजरात या महाराष्ट्र में उसे खोलने के बारे में सोंच रहे हैं। किसी ने दो दिन पहले ही उनसे इस बात की
चर्चा की थी। फिर हमने बिहार में इस
उद्योग के आने की संभावनाओं पर चर्चा की। हमें पता था की सूरत और मुंबई में स्थापित इस उद्योग में काफी बिहारी लोग काम करते
हैं। सर ने उस कंपनी के प्रतिनिधि से बिहार को भी एक संभावित निवेश स्थल के रूप
में परखने हेतु बात करने के बारे में कहा। श्रीवास्तव सर ने बात की और कंपनी के
प्रतिनिधि बिहार आ कर देखने के लिए तैयार हो गए।
प्लांट में कार्यरत कारीगर |
उदघाटन कार्यक्रम में श्री नीतीश कुमार, सुशील मोदी और श्रेयस दोषी |
नवंबर 2011 में कंपनी के एक
प्रतिनिधि राजेश कोठारी बिहार आए। बिहार फ़ाउंडेशन के कार्यालय में उनसे पहली मुलाक़ात हुई। सरकार की औद्योगिक नीति और अन्य
सुविधाओं इत्यादि पर चर्चा हुई। श्री कोठारी कुछ हद तक सकारात्मक हुए। इसी मुलाक़ात में हुई आत्मीयता में श्री कोठारी ने अपने साथ करीब दो साल पहले बिहार में हुई एक घटना का जिक्र किया। जो कुछ भी उन्होने बताया वो इस प्रकार था – 'श्री कोठारी अपने पूरे परिवार के साथ पावापुरी के भ्रमण पर
थे। संध्या पूजा के समय उन्हे कुछ देर हो गयी। जाड़े की रात थी। जिस
होटल में वो लोग ठहरे थे वह कुछ दूर था। उनके परिवार की औरतें साथ थी, गहने पहने हुए। यह उनकी पहली बिहार
यात्रा थी और बिहार के बारे में जो कुछ भी उन लोगों ने सुन रखा था उससे वो काफी भयभीत थे। डरते हुए वो लोग धीरे-धीरे होटल की तरफ बढ्ने लगे। कोई सवारी नहीं दिख रही थी। रास्ता भी ठीक से मालूम नहीं था। थोड़ी दूर आगे जाने पर एक अधेड़ उम्र के
व्यक्ति मिले। उनसे रास्ता पूछा तो उन्होने अपने साथ चलने को कहा। इन लोगों को डर भी लग रहा था पर कोई और चारा भी नहीं
था। बातों में उस
व्यक्ति को इन लोगों की समस्या का एहसास
हो गया। थोड़ी दूर आगे जा के उन्होने एक दरवाजा खटखटाया। एक सोये हुए व्यक्ति को उठाया और इनलोगों को होटल तक छोड़ने को कहा। जिस उस व्यक्ति ने उठाया, वह
एक ऑटो चालक था। साथ ही उस व्यक्ति ने उस ऑटो चालक को इनलोगों से भाड़ा नहीं लेने को कहा। डरते हुए ये लोग उस ऑटो में सवार हुए। उस ऑटो वाले ने उनलोगों को होटल तक छोड़ दिया। वो भाड़ा भी नहीं ले रहा था, पर इन लोगों ने जबरदस्ती कुछ पैसे उसकी जेब में डाल दिये।' यह एक छोटी सी पर बड़ी घटना थी। जब श्री
कोठारी यह घटना मुझे सुना रहे थे, तो एक चमक दिखाई दी उनकी आंखों में। यह विश्वास और भरोसे की चमक थी। उसके बाद मैं उनलोगों को लेकर उस समय उद्योग विभाग
के प्रधान सचिव श्री सी0 के0 मिश्रा के पास गया। सुरक्षा के प्रति वो लोग काफी हद तक आसवस्त हो चुके थे। मुझे लगता है कि उस रात की घटना ने भी इसमे अहम भूमिका
निभाई थी। सिर्फ बिजली के बारे में उन्होने जिक्र किया। श्री कोठारी ने बताया कि डायमण्ड प्लांट की कुछ मशीनों को निरंतर बिजली की आवश्यकता होती है। सी0 के0 मिश्रा सर ने भी हर संभव सहयोग का भरोसा दिलाया।
सरकार के वरीय अधिकारी के सकारात्मक रुख से उन लोगों को कुछ और
भरोसा हुआ। पटना से जाने के बाद कंपनी के प्रतिनिधि लगातार संपर्क में रहे। जमीन के
दाम, फ्लैट का किराया, सही लोकेशन और तमाम तरह की जानकारी फोन पर लेते रहे। कंपनी के प्रतिनिधि अपने स्तर से
भी जानकारी एकत्र करते रहे। पूरी स्थिति का आकलन किया। तब जा कर निवेश करने का मन
बनाया।
बिहार फ़ाउंडेशन द्वारा 15 अप्रैल 2012 को मुंबई में देश के जाने
माने उद्यमियों से माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की मीटिंग कराई गयी। यहीं श्रेनुज
के चेयरमैन श्री श्रेयस दोषी भी मुख्यमंत्री से मिले और बिहार में निवेश करने की
सहमति जताई। इस मीटिंग में देश भर के जाने माने उद्यमियों ने मुख्यमंत्री से पहली बार सीधा
संवाद किया। तमाम तरह के प्रश्न पूछे। सकारात्मक बात यह थी किसी ने भी बिहार में असुरक्षा से संबन्धित प्रश्न नहीं पूछा। इस मीटिंग हेतु
मैंने गुजरात, महारास्त्र, कर्नाटक एवं बिहार की औद्योगिक नीतियों के बिन्दुओं को तुलनात्मक रूप में बना कर दिया था। साथ ही राज्य की अन्य नीतियों के मुख्य बिन्दुओं को भी अलग-अलग
बना कर दिया था। उद्यमियों ने स्वीकार किया कि
बिहार की औद्योगिक नीति काफी अच्छी है और इस बात का पता उन्हें पहली बार चला है।
माननीय मुख्यमंत्री को पुष्पगुच्छ भेंट करते श्री रवि शंकर श्रीवास्तव |
इसके बाद बियाडा से ज़मीन हेतु एवं राज्य निवेश प्रोत्साहन परिषद से अनुमति हेतु आवेदन किया गया। सारी प्रक्रियाओं के पूरा होने एवं स्थान
आवंटित होने के बाद कंपनी के लोगों ने काम शुरू किया। 16 मई को माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने पाटलिपुत्र, पटना में माननीय उप-मुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार मोदी, श्रीमति रेणु कुमारी, माननीय मंत्री, उद्योग एवं श्री जनार्दन सिंह सिगरीवाल, माननीय मंत्री, श्रम संसाधन विभाग की उपस्थिति में इस कंपनी के ट्राइल प्रॉडक्शन का उदघाटन किया। श्री नीतीश कुमार ने पहला हीरा काट कर इस प्लांट की शुरुआत की। इस हीरे को बाद
में कंपनी ने मुख्यमंत्री को भेंट किया, जिसे मुख्यमंत्री ने पटना संग्रहालय को
भेंट कर दिया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ याद रख सकें इसी
उद्देश्य से यह पहला हीरा जो बिहार में काटा गया उसे पटना संग्रहालय को दिया गया
जिसे वहाँ प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा। इस अवसर पर कंपनी के प्रमुख श्री
श्रेयश दोषी ने अपनी कंपनी श्रेनुज के संबंध में बताया कि यह 108 साल पुरानी कंपनी
है, जिन्होने 1980 में पहली बार लेजर तकनीक का प्रयोग कर हीरा
काटने की शुरुआत की थी।
दुनिया के पंद्रह देशों में इस कंपनी का कारोबार है। कंपनी ने पटना के इस प्लांट में 150 बिहारी कारीगरों से शुरूआत की है। सभी
सूरत में इस व्यवसाय से जुड़े थे। उदघाटन के दिन उन सभी के चेहरों पर जो खुशी के भाव थे उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। यह खुशी थी अपनी जमीन से वापस जुडने की, अपने लोगों के करीब आने की। इन कारीगरों के प्रमुख सुनील सिंह से उदघाटन के चार दिन पहले उस वक़्त मुलाक़ात हुई थी जब मैं प्लांट में उदघाटन समारोह की
तैयारियों के संबंध में पाटलिपुत्र गया था। सुनील सिंह ने बताया कि – 'सर, मैं बीस साल से सूरत में यह काम कर रहा था। कभी सपने में भी नहीं सोंचा था कि बिहार में
हीरा तराशने की कोई फ़ैक्टरी
लगेगी। आज यहाँ आप लोगों के प्रयास से
यह प्लांट लग गया
है। अभी भी यकीन नहीं हो रहा है। मेरी पत्नी और बच्चे अभी भी सूरत में हैं। उन्हे वापस ले आऊँगा अब। मेरे बूढ़े पिताजी छपरा में रहते हैं। पहले साल में एक या दो बार ही आ पाता था, पर अब यहाँ प्लांट
लग जाने से मैं अपने पिता से भी समय-समय पर मिल सकूँगा।' सारे कारीगर अपने रिशतेदारों और इस क्षेत्र में काम करने वाले बिहारी मूल के अन्य कारीगरों से फोन पर यह खबर
दे रहे थे। यह बता रहे थे कि अब बिहार से बाहर नहीं रहना पड़ेगा। अपने घर के करीब
ही रह सकते हैं। उन कारीगरों के बिहार में रहने वाले रिश्तेदार भी काफी खुश हैं इस
बात से। किसी को भी सहसा यकीन नहीं हो रहा है कि सचमुच ऐसा हो रहा है। एक सपने जैसा है सब।
अभी तो यह
सिर्फ शुरुआत है। अगले दो सालों में कंपनी ने अपनी पूर्ण क्षमता में कार्य करने का
लक्ष्य रखा है। उस समय 1500 लोगों को रोजगार मिलेगा। और सभी लोग पूर्णतह बिहार के
ही होंगे। कंपनी खुद ही लोगों को प्रशिक्षित करेगी और अपने यहाँ ही रोजगार देगी। कुल निवेश 600
करोड़ का होगा। लगभग तीन लाख हीरे
प्रतिवर्ष तराशे जाएंगे। इन हीरों को ज़्यादातर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भेजा जाएगा। इस व्यवसाय में भारत का हिस्सा 90 प्रतिशत है और इस 90 प्रतिशत हिस्से में 30 प्रतिशत कारीगर बिहार
के हैं। अतः हमारी योजना है इस व्यवसाय को घरेलू उद्यम बनाने की। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके। इसकी पोलिशिंग मशीन जिसे चकरी (व्हील)
कहते हैं, की कीमत एक लाख रुपए है। जो किसी घरेलू उद्यम के हिसाब से
बहुत ज्यादा नहीं है। इस मशीन को लोग खरीद लें और कंपनी से हीरे ले कर उसे अपने घर
में तराश कर कंपनी को वापस दे दें। यह ठीक वैसे होगा जैसे लिज्जत पापड़ उद्योग में
होता है। लोग कंपनी से पापड़ का आटा रोज अपनी क्षमता के हिसाब से घर ले जाते हैं और
उसे पापड़ बना कर लिज्जत को वापस दे जाते हैं। गुजरात
में हीरे की ऐसी चकरी कई इलाकों में चलती है। एक सपना तो रास्ते पर आया है। अगर सब
कुछ सही रहा और इसे घरेलू उद्योग में स्थापित किया जा सकेगा तो निश्चय ही हजारों
घरों की नियति बदल जाएगी। उम्मीद है यह सपना भी सच होगा।